कितना अच्छा हुआ हम नजरो से दूर हो गए
तन की दूरी बढ़ी और मन से करीब हो गए ।
तेरी एक झलक को यहाँ तरसती थी आँखे
मनचाहे रूप मे सजाती, अब मेरी बंद आँखे।
पहले बातों की बात बनती बात बनते बनते
मन बहलता अब हवाओं से तेरी बात कहते ।
कई बार सहमी होंगी हाथें तुझे छूते – छूते
सपनों में बडे करीब होते हो सोते – सोते ।
मान लूँ कैसे तुझे नहीं सताती होंगी मेरी यादें
उन लम्हों में याद करना,अपने सपने मेरे वादे।
फिर से कह दो ना , भूली नहीं वो चांदनी रातें
कैसे भूल पाएंगे हम उन बीती रातों की बातें ।
पिया घर न गिराना आँसू प्रीतम की बेरहम जुदाई पर
पलभर के लिए पलकें बंद कर लेना अंतिम विदाई पर ।।